वैशाली। पुलिस प्रशासन की निष्क्रियता का अजीबोगरीब मामला सामने आया है। वैशाली में वाहन लूटकांड और 20 साल तक पुलिस को मुंह चिढ़ाता रहा। इतना ही नहीं इस बीच वह पुलिस प्रशासन के नाक के नीचे सरकारी शिक्षक की नौकरी भी कर रहा है, लेकिन पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लगी।
निर्दिष्ट वर्ष 2003 में हरिश्चंद्र प्रसाद सिंह ने गोरौल थाना क्षेत्र के हरपुर कस्तूरी गांव निवासी संजीत कुमार की पीकअप गाड़ी को यात्री पर लिया था। इसके एक दशक बाद अपने साथियों के साथ मिलकर संजीत कुमार पर पागल होकर लगातार गाड़ी लूट ली। इसे सह लेकरदेई थाना में 32/03 कांड दर्ज किया गया। इस बीच पुलिस को उसको पकड़ नहीं सकी जिसके बाद पेंशन के गृह थाना गोरौल ने आरक्षण घोषित कर दिया।
सरकारी कागजों में चाहे ही हरिश्चंद्र प्रसाद सिंह भैया, लेकिन 2012 में उसने पूर्वी चंपारण के छौड़ादानों में उत्क्रमित मध्य विद्यालय विष्णुपुरवा में सहायक शिक्षक के रूप में योगदान देने की नौकरी करने लगा। वर्तमान में वह मुजफ्फरपुर जिले के कुढ़नी स्थित मध्य विद्यालय बलौर में शिक्षक के रूप में काम कर रहा था और पुलिस की दस्तावेज में वह बहरा ही था। ऐसे में सवाल है कि 20 साल से भत्ता चार्जि के गृह थाना गोरौल ने छपाई में वारंट कैसे घोषित किया था?
सवाल यह भी है कि फर्जी फर्जीवाड़ा कर 2012 से शिक्षक के पद पर पद के लिए जिम्मेदार हो गए और पुलिस से लेकर शिक्षा विभाग को इसकी भनक क्यों नहीं लगी? पुलिस दावा कर रही है कि दस्तावेज़ के दौरान उसने दस्तावेज़ीकरण के दौरान शिक्षा सूचना विभाग देने के बाद कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? प्रवेशा अभियुक्त का भ्रासी के शिक्षक बनने के दौरान, थाना से अलग हटना और लगातार स्कूल में अटेंडेंस बनना, सैलरी कहीं न कहीं न कहीं बिहार सरकार, लोक थाना, शिक्षा विभाग पर सवाल खड़ा करता है।
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पहले प्रकाशित : 18 मार्च, 2023, 14:08 IST