लखीसराय न्यूज : सुल्तानगंज का यह शख्स क्यों कर रहा 1300 किमी की पदयात्रा, जानिए क्या है वजह


रिपोर्ट- अविनाश सिंह

लखसराय : जिद को कुछ भी हासिल करना चाहिए वरना उम्मीद है कि हर कोई बैठा है। जब कोई भी काम करने का मन बना लेता है तो फिर कोई मुश्किल रास्ते की परेशानी नहीं पैदा होती है। इसी को चरितार्थ करते हुए सुल्तानगंज के पुराने दुर्गा स्थान की गली नंबर पांच के रहने वाले ओमप्रकाश राम के बेटे पंकज कुमार 12 मार्च को सुल्तानगंज से दिल्ली तक की लगभग 1300 किलोमीटर की पदयात्रा पर निकल गए हैं। इस दौरान आज पंकज बड़िया पहुंचे।

उन्होंने बताया कि 1862 में सुल्तानगंज रेल लाइन के क्रम में खुदाई के दौरान भगवान बुद्ध की अद्भुत प्रतिमा निकली थी। जिसे अंग्रेजों द्वारा ले इंग्लैंड के बर्मिंघम संग्रहालय में रखा गया है। इसी को लेकर सुल्तानगंज से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा पर आवंटन हूं। वहां पहुंचकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मूर्ति को वापस लाने की गुजारिश करेंगे। मुझे विश्वास है कि प्रधानमंत्री जी से भी मुलाकात करेंगे और हमारी विरासत रूपी भगवान बुद्ध की मूर्ति वापस आने में मेरी मदद भी करेंगे।

लोगों के समर्थन को देखकर बहुत भावुक हो जाते हैं पंकज

पंकज का कहना है कि जब सुल्तानगंज से उनकी पद यात्रा शुरू हुई तो सुल्तानगंज के लोगों ने मुझे काफी उत्साहित किया। काफी संख्या में पहुंचे लोगों ने मनोबल बढ़ाने का काम किया। लोगों ने कहा कि मुझे गर्व है कि आप हमारी विरासत को आने के लिए पद यात्रा पर निकले हो।

पंकज ने बताया कि लोगों का समर्थन और उत्साहवर्धन ने एक नई ऊर्जा का संचार किया है जो मेरे इस आने में काफी हद तक सिद्ध होगा। जीने खाने के सवाल पर पंकज कहते हैं कि जब पद यात्रा पर निकले तो वास्तविक भारत की तस्वीर मेरे सामने आई है। लोग काफी मदद कर रहे हैं। जीने की बात तो छोड़िए यहां के लोग तो मुझे आर्थिक मदद भी तैयार हैं।

परिवार भी भरपूर सहयोग कर रहा है

पंकज स्टेटमेंट्स हैं कि मेरे परिवार की तरफ से भी मुझे भरपूर समर्थन मिल रहा है। पत्नी के साथ माता-पिता और बच्चे काफी उत्साहवर्धन कर रहे हैं। बेटे ने कहा कि पिता जी आप काफी अच्छा काम करने के लिए जा रहे हैं। मुझे गर्व है कि पापा आपकी विरासत को आने में लगे हैं।

प्रधानमंत्री राइटिंग लेटर हैं

उन्होंने बताया कि इस सन्दर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिख चुका हूं, लेकिन मुझे कोई जवाब नहीं मिला है। जब अपने आस-पास और गांवों के बड़े-बड़े रोड़े से इस अलौकिक मूर्ति के बारे में सुना तो इसकी सच्चाई जानने का प्रयास करने लगा।

इस समीक्षा के दौरान आरटीआई का भी सहयोग लिया। जिस से यह स्पष्ट हो गया है कि महत्वाकांक्षी कहानियां काल्पनिक वास्तविक नहीं है। जिसके बाद धारणा के तौर पर इसकी एक प्रति कला एवं संस्कृति मंत्रालय को भी भेजा जाता है। वहीं एक-एक प्रति भारतीय उच्चायोग कनाडा और बर्मिंघम में भी भेज चुका हूं।

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