पश्चिम चंपारण: शादी-ब्याह या किसी धार्मिक अवसर पर पीतल और ब्रैंज के नोट का बहुत बड़ा महत्व है। जितनी महत्वपूर्ण धातु होती है, उतनी ही अधिक इसकी कीमत भी होती है। ऐसे में न चाहते हुए भी अच्छा खासा खर्च हो जाता है।
इतना ही नहीं, सैकड़ों पुराने धातु के नोट भी जब आप बाजार में साफ करने के लिए ले जाते हैं, तब भी उम्मीद से ज्यादा खर्च होने की संभावना होती है। ऐसे में आज हम आपको एक ऐसी जानकारी दे रहे हैं, जिसके बाद खर्च 4 से 5 उदाहरण तक कम हो जाएगा।
गांव के उपमुखिया राजन ने बताया कि बेतिया के राजा ने 500 साल पहले काम से खुश होकर मझौलिया प्रखंड में कसेरा गांव को बसाया था। यहां नेपाल और बंगाल के भी लोग रहते हैं। इस गांव में कुल 250 परिवार हैं। यहां की खास बात यह है कि गांव का हर एक परिवार पिछले 5 से ब्रेज़ेन और पीतल की झालर को भट्टी में फँसाकर उन्हें एक खास आकार देता है। साथ ही आकर्षण से कैसे बनाए गए फोटो बनाए जाते हैं।
बाजार से 4 गुना कम कीमत
उप-मुखिया राजन और कारीगरों के अनुसार बाजार से 4 से 5 गुना कम कीमत पर यहां नॉट की बिक्री और सफाई की जाती है। दरअसल बाजार में धातु के निशान की सफाई 200 से 250 रुपए प्रति किलो के होश से होती है। जबकि यहां उससे 4 गुना कम कीमत यानी 70 रुपए प्रति किलो के हिसाब से रखी जाती है।
गांव वालों के अनुसार बाजार के शॉपर्स भी इन्हीं के पास इस काम के लिए आ रहे हैं। बेतिया के जनता सिनेमा चौक निवासी संदीप ने बताया कि उन्होंने अपने पुराने धातु के निशानों की सफाई कसेरा टोलाहज 1500 रुपए में जांच की। जबकि इसके लिए बाजार में 6000 रुपए मांगे गए थे।
एक हजार किलो पीतल का दैनिक घटता है
राजन ने बताया कि गांव में अकेले एक हजार किलो तक पीतल के नोट तैयार किए जाते हैं। एक थाली का वजन लगभग 1 किलोग्राम तक होता है। ऐसी 150 से 200 थालियां एक दिन में तैयार की जाती हैं। ठीक उसी प्रकार लगभग 3 से 4 किलो वजनी 100 से 120 घंटियां तथा 500 ग्राम वजनी लगभग 150 से 200 कलछूल तैयार करते हैं। जिसे बिहार समेत दिल्ली, बंगाल, झारखंड और यूपी में सप्लाई किया जाता है।
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पहले प्रकाशित : 17 मार्च, 2023, 12:18 IST