रिपोर्ट–आशीष कुमार
पश्चिम चंपारण। देश के कई राज्यों में गिरावट हुई स्तर चिंता का विषय बना है। हालांकि पंजाब और हरियाणा में इसकी स्थिति काफी खराब है। लेकिन बात अगर बिहार की नजर में है, तो यहां की स्थिति भी ठीक नहीं है। राज्य के वार्षिक आर्थिक सर्वेक्षण (2022-23) के अनुसार दो वर्षों से यहां के भू-स्तर में काफी गिरावट आई है। इसके अलावा पानी की गुणवत्ता भी खराब हुई है। प्री-मानसून भू स्तर के ऊपर औरंगाबाद, सारन, सीवान, गोपालगंज, पश्चिमी चंपारण, सितारमढ़ी, शिवहर, खगड़िया, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया, कटिहार में दर्ज की गई है।
बिहार के पीएचईडी मंत्री ललित कुमार यादव ने कहा कि विभाग द्वारा मामले की जांच की जा रही है। हम पानी की गुणवत्ता में कमी के कारण और इसे रोकने के लिए दस्तावेजों को वापस लेने वाले निवारक कदमों का पता लगाने के लिए एक नए अध्ययन की योजना बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि भू-स्तर में गिरावट को रोकने के उपायों पर राज्य सरकार के अन्य संबंधित समझौतों के साथ भी चर्चा की जाएगी।
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मार्च में पहली बार गिरा भूस्तर
बिहार आर्थिक सर्वेक्षण (2022-23) के अनुसार 2021 में प्री-मानसून अवधि के दौरान औरंगाबाद, नवादा, कैमूर और जमुई जैसे भू-तल जमीन से कम से कम 10 मीटर नीचे था। पीएचईडी के कार्यपालक अभियोक्ता दीपक कुमार के अनुसार, पश्चिम चंपारण जिले में पानी का औसत प्रारूप 14.2 फीट है। ऐसा पहली बार हुआ है कि मार्च में ही परत कई फीट नीचे गिर गई है। सामान्य रूप से ऐसा मई में देखने को मिलता है।
बिहार के विभिन्न नेटवर्क में भू-जल का स्तर है
औरंगाबाद में प्री-मानसून भू-जल स्तर 2020 में 10.59 मीटर था। 2021 में यह घटक 10.97 मीटर रह गया है। अन्य जैसरन जैसे सारण (2020 में 5.55 मीटर से 2021 में 5.83 मीटर), सीवन (2020 में 4.66 मीटर और 2021 में 5.4 मीटर), गोपालगंज (2020 में 4.10 मीटर और 2021 में 5.35 मीटर), चम्पारण (2020 में 5.52 मीटर और 2021) में 6.12 मीटर), सुपौल (2020 में 3.39 मीटर और 2021 में 4.93 मीटर) रह गया है। अधीनस्थ है कि बिहार के 1,14,651 ग्रामीण वार्डों में से 29 शटर में 30,207 ग्रामीण वार्डों में भू-जल की गुणवत्ता प्रभावित पाई गई है। इसके चलते राज्य में कृषि, औद्योगिक और घरेलू अध्ययन से भी प्रभावित होने की अनुमान है।
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पहले प्रकाशित : 17 मार्च, 2023, 21:01 IST