दुनिया के सबसे खुश व्यक्ति मैथ्यू रिचर्ड शुरुआत करने वालों के लिए दुनिया के सबसे खुश इंसान हैं


दुनिया का सबसे खुश इंसान: आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों को अपनी खुशी का खास ख्याल रखना है। ऐसे में लोग अपनी खुशी के लिए क्या-क्या नहीं करते। कुछ लोग इसके लिए नजर-फिरते खरीदारी करते हैं तो कुछ फिल्में देखते हैं। वैसे कहा जाता है कि मोहब्बत से नहीं जा सकता। लेकिन, एक शोध के नतीजे सामने आए कि किसी चीज से न केवल खुशी मिलती है, बल्कि जैसे-जैसे रास्ते बढ़ते हैं, खुशी का ग्राफ भी बढ़ता चला जाता है।

खोज में पाया गया है कि 80 लाख रुपये की आय करने से खुशी बढ़ती है और आगे बढ़ती जाती है। दरअसल, नोबेल पुरस्कार विजेता और अर्थशास्‍त्री डेनियल काह्न मैन ने 33 हजार से अधिक अमेरिकी वयस्कों (18 से 65 वर्ष) को अपने शोध का हिस्सा बनाया। इन वयस्कों की योजना 10 हजार डॉलर से कम थी। इन दोस्तों की प्रतिक्रिया जानने के बाद काह्न मैन ने माना कि पैसे का खुश रहने से संबंध है। यह रिपोर्ट नेशनल एकेडमी ऑफ मार्केटिंग में प्रकाशित हुई है।

किसी खुशी का कोई लेना-देना नहीं!
बता दें कि नोबेल पुरस्कार विजेता डेनियल काह्न मैन वही शख्स हैं, जिन्होंने साल 2010 में कहा था कि किसी को खुशी का कोई लेना-देना नहीं है। इस खोज में मैथ्यू रिचर्ड नाम के एक व्यक्ति की कहानी है। मैथ्यू रिचर्ड का जन्म 1946 में हुआ था। मैथ्यू के मां-बाप फिलॉसफी पढ़ते थे। मैथ्यू बाकी बच्चे फ्रेंच की तरह ही सामान्य स्कूल-कॉलेज गए, लेकिन उन्होंने जेनेटिक्स में मॉलिकर कर लिया। ये पढ़ाई में सबसे बड़ा डिग्री था।

फ्रांस छोड़कर भूटान गए
मैथ्यू रिचर्ड इसके बाद भी खुश नहीं हुए और खुशी की तलाश में चले गए फ्रांस तिब्बत आ गए। तिब्बत में मैथ्यू दलाई लामा के फ्रेंच दुभाषिए का काम करने लगे। यहां पर वे मेडिटेशन करने लगे। उन्होंने बौद्ध धर्म से जुड़ी बाकी चीजें सीखीं, धीरे-धीरे समय के साथ मैथ्यू की खुशी भी बढ़ती गई। यहां तक ​​कि उनके करीब आने वाले लोग भी खुश रहें। मैथ्यू ने खुद ही कहा कि उन्हें हरदम खुश रहने का तरीका चुका है और अब कोई भी बदलाव उन्हें उदासी नहीं करता।

12 साल तक खोज निकाला
इसके बाद मैथ्यू रिचर्ड का नाम हुआ तो विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इसकी जांच करने की ठानी। विश्वविद्यालय के न्यूरो कार्यकलापों ने उनके सिर पर 256 सेंसर लगा दिए, जिससे अंदर हो रही हरेक हलचल का पता लग जाए। ये खोज 12 साल तक चली। इसमें दिखाया गया है कि जब भी भिक्षु ध्यान करते हैं तो उनके दिमाग का गामा विकिरण पैदा करता था। ये ध्यान और संग्रह को बढ़ाने में मदद करते हैं।

सेंसर के जरिए दिखा रहा है कि मैथ्यू का बांया हिस्सा काफी ज्यादा एक्टिव था। ये हिस्से की रचनात्मकता से तो ही आर्सिंग है, साथ ही हैप्पीनेस से भी आर्सिंग है। संतों की पार्टी ने ऐसा कभी नहीं देखा था। आखिरकार शोध करने वालों का मानना ​​है कि मैथ्यू के भीतर इतनी खुशी है कि नकारात्मकता के लिए कोई जगह ही बाकी नहीं है। बाद में ये शेष बौद्ध संतों को भी खोज निकले। इस दौरान देखा गया कि लंबे समय तक ध्यान की प्रैक्टिस करने वालों के दिमाग में काफी सारे बदलाव होते हैं। यहां तक ​​कि लगातार तीन हफ्ते तक 20 मिनट तक ध्यान देने से भी दिमाग में बदलाव आने लगे।

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