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इस बार चीन को घेरने के लिए भारत के लिए क्यों अहम साबित होगा ऑस्ट्रेलिया ABPP


चीन और ताइवान के बीच बढ़ते तनाव और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उभरती हुई हिस्सेदारी के लिए ऑस्ट्रेलिया ने हाल ही में लंबी दूरी तक फोकस साधने वाले मिसाइलों को खरीदने में तेजी की बात कही थी। ऑस्ट्रेलिया ने ये फैसला किया कि चीन से खतरा बढ़ने का मुकाबला करने के लिए था। ऑस्ट्रेलिया के इस कदम से ये साफ है कि प्रतिरक्षा के क्षेत्र में अब ऑस्ट्रेलिया भी खुद को आत्मनिर्भर बनाना चाहता है।

बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक इन मिसाइलों को खरीदने के लिए ऑस्ट्रेलिया 12 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च करेगा। इस देश की रक्षात्मक समीक्षा 2023 की तरह तो ऑस्ट्रेलिया की रक्षा रणनीति में दूसरे विश्व युद्ध के बाद पहली बार इतना बड़ा बदलाव किया गया है।

ये कुछ अमेरिका के घटते महत्व के कारण भी मिलते हैं। चीन का महत्वहीन रवैया न सिर्फ भारत, अमेरिका बल्कि कई अन्य देशों की परेशानी का कारण बना है। एक तरफ जहां चीन दुनिया का ‘सुरक्षा प्रदाता’ बनने के लिए महाशक्ति बनने की महत्वाकांक्षा फीकी पड़ रही है, तो वहीं दूसरी तरफ दक्षिण चीन सागर में अपनी नौसेना की मौजूदगी बढ़ गई है। चीन इस क्षेत्र पर अपना दावा करता है जो अंतरराष्ट्रीय कानूनों के विपरीत है।

चीन के उदय के साथ ही अब प्रजातांत्रिक देशों के लिए आपके भविष्य के बारे में डाक टिकट जरूरी हो गया है। यही कारण है कि ऑस्ट्रेलिया ने अपने रोबोटिक्स की रक्षा की तैयारी शुरू कर दी है।

भारत की क्या भूमिका होगी

दक्षिण चीन महासागर में आक्रामक और विस्तारवादी चीन के दृष्टांत से ऑस्ट्रेलिया की चिन्तनात्मक प्रकृति है, क्योंकि देर से सेवर आंच तो प्रशांत क्षेत्र में भी पहुंचेगी। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया की रक्षात्मक समीक्षा (डीएसआर) जारी की गई थी। जिसकी समीक्षा रिपोर्ट के अनुसार भारत-प्रशांत क्षेत्र में रक्षा सहयोग कार्यक्रम को बढ़ावा दिया जाएगा।

ऐसा करना ऑस्ट्रेलिया के हित में होगा। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान जैसी प्रमुख शक्तियों के साथ सामान्य सहयोग भी बढ़ाया जा सकता है। ऑस्ट्रेलिया को भारत और जापान के पुनर्निर्माण के साथ विस्तार देने की आवश्यकता है।

भारत में एक उभरती हुई ताकतें हैं। इस देश को इकोनॉमिक पावर हाउस की तरह देखा जाता है। भारत के वैश्विक मामलों में भी महत्वपूर्ण खिलाड़ी माना जा रहा है। इस देश ने एक समान सहयोगी की छवि बनाई है और इसे ग्लोबल स्टेबलाइजर भी माना जा रहा है।

भारत के विदेश मंत्री ने समय-समय पर भारत के साझेदारी को बहुत विस्तार से वैश्विक मंच पर रखा है। वर्तमान में भारत को देश आदर की नजर से सभी देखते हैं। ऐसे में अगर ग्लोबल थिएटर की घटनाओं को अंजाम देना है तो भारत को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है।

भारत और ऑस्ट्रेलिया के संबंध बेहतर हैं

बता दें कि कोविड-19 के बाद चीन और ऑस्ट्रेलिया के बीच तनातनी हो गई थी। उस समय ऑस्ट्रेलिया ने महामारी के ओरिजिन का पता लगाने की मांग की थी, जिस पर चीन ने प्रतिक्रिया दी। उसके नशे से ही ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच संबंध गहरे होते जा रहे हैं।

भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच कई मामलों में समानता

भारत और ऑस्ट्रेलिया का दृष्टिकोण भारत-प्रशांत में कई समकालीन समुद्री सुरक्षा मुद्दों पर समानता साझा करते हैं। ये दोनों देश ही हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी (आईओएनएस), हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (आईओ आरए) और पश्चिमी प्रशांत नौसेना संगोष्ठी (डब्ल्यूपीएनएस) जैसे मंचों पर कई मुद्दों पर एक साथ काम कर रहे हैं।

ऑस्ट्रेलियाई नौसेना ने डार्विन में बहुपक्षीय अभ्यास आयोजित किया था जिसमें भारतीय नौसेना के जहाज सतपुड़ा और भारतीय नौसेना के एक पी-8आई समुद्री गश्ती विमान ने हिस्सा लिया था।

ऑस्ट्रेलिया का अब किस पर होगा जोर

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार ऑस्ट्रेलिया को अब ज़मीनी देरी से हिटकर ‘लंबी दूरी तक लक्षित संसाधन वाले और ऑस्ट्रेलिया में बने गोले-डायोमाइट पर अपना ध्यान केंद्रित करेगा।

इसी रिपोर्ट में ऑस्ट्रेलिया के रक्षा मंत्री रिचर्ड मार्ल्स ने कहा, “हमें ऐसी रक्षा बल की पहचान है जिसकी लंबी दूरी तक लड़ने की असरदार क्षमता हो सकती है।” उन्होंने आगे कहा कि हम 500 किलोमीटर की दूरी तक ‘हमला करने वाली शंकाओं’ को ख़तरे देंगे जिससे सेना समझ में आ जाएगी।

चीन का सैन्य बजट भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान से बहुत अधिक है

चीन में शी जिनपिंग की दलाली करने वाली सरकार ने अपने सैन्य बजट को बढ़ाकर 225 अमेरिकी अरब डॉलर कर दिया है। इस देश का सैन्य बजट भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान से अधिक है। भारत का सैन्य बजट 73 अरब अमेरिकी डॉलर, ऑस्ट्रेलिया का 48.7 अरब अमेरिकी डॉलर और जापान का 51 अरब अमेरिकी डॉलर है।

स्ट्रैटजी जानकारों का संबंध तो वास्तव में चीनी का सैन्य बजट जारी किए गए आंकड़ों से ज्यादा है। उसका सैन्य-औद्योगिक खर्च की कुल संख्या सैन्य खर्च से अलग होगा, और यह पात्र भी अरबों अमेरिकी डॉलर में है। निर्धारण खर्च का रणनीतिक इरादा चीन के खिलाफ तीन प्रमुख कदम तैयार कर रहा है- ताइवान मेल, सिंकियांग या झिंजियांग और तिब्बत

सबसे ज्यादा खर्च करने वाले पांच बड़े देश

अमेरिकाः 71 लाख करोड़ रुपये (0.7% अतिसंवेदनशील)
चीनः 23 लाख करोड़ रुपये (4.2% का अब्ज़िब)
रूसः 7 करोड़ रुपए (9.2% की वृद्धि)
भारतः 6 करोड़ रुपए (6% संयोग)
सऊदी अरब: 5.8 लाख करोड़ रुपए (16% बढ़ा हुआ)

चीन, सैन्य बलों को क्यों बढ़ाया गया है

सैन्य खर्च की बात करें तो चीन अकेले हर साल 200 अरब डॉलर से ज्यादा खर्च करता है। साल 2023 के बजट में चीन का रक्षा खर्च बढ़कर 1.55 युआन (करीब 225 बिलियन डॉलर) हो गया। यह 2022 का बजट 7.2 प्रतिशत अधिक है, और सैन्य खर्च में लगातार आठवें वर्ष में वृद्धि हुई है।

सिपरी की रिपोर्ट के अनुसार चीन ने ताइवान और दक्षिण चीन सी पर अमेरिका से संबंध के संबंध में अपने डिफेंस बजट को बढ़ा दिया है। इसके साथ ही यह देश लगातार भारतीय सीमा पर तैयारियां मजबूत कर रहा है। अमेरिका के बाद चीन की सेना पर सबसे ज्यादा पैसा खर्च करने वाला दूसरा देश बन गया है। दुनिया में सबसे ज्यादा अमेरिका का सैन्य खर्च है, जो इस साल के लिए 842 अरब डॉलर निर्धारित किया गया है।

चीन के खिलाफ चौकोर देश की रणनीति

चीन ने अपने सैन्य बजट को 7.2% बढ़ाकर 225 बिलियन अमेरिकी डॉलर कर दिया है। जिसके मद्देनजर क्वाड (QUAD) देशों की रणनीति भी बन रही है। विशेष रूप से क्वाड भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान का समूह है।

चीन के खिलाफ इन चार देशों का समूह अपनी सूची है। चीन के बढ़ते सैन्य खर्च और उद्योग के आकार को देखते हुए क्वाड सदस्य अपने रक्षा और आर्थिक सहयोग को गहरा करने के लिए बाध्य हैं।

ग्लोबल जानकारों की रचना तो QUAD मेंबर्स को चीनी चालों से बातचीत के लिए साथ रहना बहुत जरूरी है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते अध्ययन इसके प्रमुख कारण बन जाते हैं।

एक तरफ जहां चीन के छोटे-दादा-दादा-दादी-नाना-नाना-नाना-नानी अन्य देशों की चिंता बढ़ रही है, वहीं दूसरी तरफ रूस-यूक्रेन के जंग में चीन के रूस को भी भारत के लिए चिंता करने वाली बात है। क्योंकि, चीन और रूस अपने मित्र को ‘कोई सीमा नहीं’ बता रहे हैं। यदि रूस चीन के पाले में जाता है तो इससे भारत को बड़ा नुकसान होगा।

हिंद महासागर में तेजी से बढ़ रही है

भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान के बीच, इंडो-पैसिफिक चीनी नौसेना का विस्तार मुख्य योजना में से एक है और इसकी मध्यम दूरी की पारंपरिक और परमाणु मिसाइल आर्सेनल एक प्रमुख चिंता का विषय है।

सालों से चीनी रणनीतिक निगरानी जहाज लगातार हिंद महासागर के तल और लोम्बोक और ओम्बी-वेटर के दक्षिण चीन सागर में दर्ज की जा रहे हैं। क्योंकि परमाणु या पारंपरिक पनडुब्बियों को दक्षिण चीन सागर से सुंडा या मलक्का जलडमरू मध्य के माध्यम से हिंद महासागर में पार करना पड़ता है। लोम्बोक और ओम्बी-विटार चैनल, ऑस्ट्रेलिया के करीब, सतह की आवश्यकता के बिना पनडुब्बियों को संभालने के लिए काफी गहरे हैं।

भारत चीन के संबंध

भारत और चीन के रिश्ते हमेशा चर्चा में रहते हैं। दोनों देशों के रिश्तों को लेकर हाल ही में अमेरिका की एक खुफिया रिपोर्ट सामने आई थी। इसमें दावा किया गया है कि आने वाले समय में भी दोनों देशों के रिश्ते एक दूसरे के साथ रहने वाले हैं।

हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार अमेरिकी संसद ने वर्ष 2023 के मार्च महीने में वार्षिक थ्रेट एसेसमेंट यानी बाहरी बाहरी वरिष्ठों की रिपोर्ट पेश की है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन और भारत बातचीत कर सीमा के विवाद को कम करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद भारत और चीन के बीच संबंध में तनाव बना रहेगा।

इस रिपोर्ट में अमेरिका के खुफिया तंत्र ने अमेरिका के लिए सनसनी फैला दी है। पहला, अमेरिका और उसके साथियों के बीच रणनीतिक बातचीत और दूसरा रूस-चीन।

साल 2022 में सबसे ज्यादा खर्च करने वाले ये तीन देश हैं

सिपरी के मुताबकि दुनिया भर के सभी देशों में कुल मिलाकर इतना खर्च मिलिट्री पर हो रहा है, उसका 57 प्रतिशत हिस्सा केवल तीन देश कर रहे हैं। अमेरिका, रूस और चीन। रक्षा मामले में सबसे बड़ी ऐतिहासिक बढ़त यूरोपीय देशों में देखने को मिली है। यूरोपीय देशों ने पिछले 30 वर्षों में सबसे बड़ा योगदान दिया है। यूरोपीय देशों ने अपने रक्षा बजट में 13 कारण बताए हैं। वजह रूस और यूक्रेन के बीच जंग चल रही है।

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